आग सान सू से मिलेगे मनमोहन 28-05-2012
ने पाई ता। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
मंगलवार को विपक्ष की नेता
आग सान सू की से मुलाकात करेंगे और समझा जाता है कि इस भेंट
में वह म्यांमार
की, पूर्ण
लोकतंत्र में बदलाव की दिशा में प्रगति के प्रति भारत का पूर्ण समर्थन जाहिर करेंगे। यंगून
में सिंह और सू की की मुलाकात से पहले,
विदेश मंत्री एस एम
कृष्णा ने कहा कि सू की म्यामार के महत्वपूर्ण नेताओं में से
एक हैं और प्रधानमंत्री
का सद्भावनावश उनसे मुलाकात करना तथा इस देश की लोकतात्रिक प्रक्रिया को समृद्ध करने के लिए राष्ट्रीय
सुलह सहमति की खातिर उन्हें
हमारी शुभकामनाएं देना स्वाभाविक है। यह पूछे जाने पर कि म्यांमार में
लोकतंत्र की समृद्धि में मदद के लिए
भारत की क्या प्रतिबद्धताएं हो सकती हैं, कृष्णा ने कहा कि लोकतात्रिक प्रक्रिया
के लिए और प्रतिबद्धताएं जताने वाले हम कौन हो सकते हैं। यह एक स्वतंत्र, संप्रभु देश है जिसके साथ हमारे
कूटनीतिक और अन्य तरह के संबंध
हैं। भारत
में शिक्षित और नोबेल शाति पुरस्कार से सम्मानित 66
वर्षीय सू की
के साथ सिंह की मुलाकात,
प्रधानमंत्री की म्यांमार के राष्ट्रपति थीन सीन से
बातचीत के एक दिन बाद होगी। बीते एक बरस में म्यांमार में राजनीतिक सुधारों
की पहल करने का श्रेय थीन सीन को ही जाता है। इन सुधारों के कारण म्यांमार में माहौल
बहुत बदला है जिसकी बदौलत ही
सिंह राजनीतिक दायरे में विपक्ष के नेताओं से मुलाकात कर रहे
हैं। पिछले कुछ
वर्ष के दौरान पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम और उप राष्ट्रपति हामिद
अंसारी म्यांमार आए थे लेकिन तब वह नजरबंद सू की से नहीं मिल पाए थे। सिंह
की सू की से मुलाकात को इस बात का साफ संकेत समझा जा रहा है कि नई दिल्ली
इस लोकतात्रिक कार्यकर्ता के साथ अपने रिश्ते मजबूत करना चाहती है। पूर्व
में उसे म्यांमार के पूर्व सैन्य जुंटा के साथ संबंधों को लेकर आलोचना
का सामना करना पड़ा था। अगले
माह 67 साल
की होने जा रही सू की नई दिल्ली ने हमेशा सम्मान किया है। वर्ष 1993 में नई दिल्ली ने
उन्हें प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू अवार्ड
दिया। लेकिन सुरक्षा और ऊर्जा के मुद्दे तथा म्यांमार में चीन
के बढ़ते प्रभाव
की वजह से भारत को अपना रुख बदलना पड़ा जिसके साथ सैन्य जुंटा से नजदीकी
शुरू हुई। फिर भारत ने 2004 में
पूर्व वरिष्ठ जनरल थान श्वे को
आधिकारिक दौरे पर आमंत्रित किया। सूत्रों के अनुसार, भारत ने म्यांमार के घरेलू राजनीतिक
विवाद में किसी का
भी पक्ष लेने से हमेशा इन्कार किया और इस देश के नेतृत्व के समक्ष यह स्पष्ट
किया है कि वह किसी भी सरकार के साथ काम करने के लिए तैयार है। सिंह
और सू की के बीच मुलाकात ऐसे समय पर हो रही है जब सू की की छवि सैन्य
जुंटा का विरोध करने वाली नेता से बदल कर लोकतात्रिक देश की एक राजनीतिक
के तौर पर बन रही है। यह
बदलाव दो मई से शुरू हुआ जब सू की ने संसद सदस्य के तौर पर शपथ ली। इसके
ठीक एक सप्ताह पहले ही उन्होंने सेना द्वारा तैयार संविधान के मुताबिक शपथ
लेने से मना कर दिया था जिससे राजनीतिक संकट खड़ा हो गया था। वह चाहती थीं
कि शपथ संबंधी बयान के प्रारूप के एक शब्द को बदला जाए। बाद में सू की ने अपना इरादा बदला और
संसद सदस्य के तौर पर शपथ ले ली।
यह राजनीतिक बंदी से सरकार में लोकतंत्र के नए चरण के लिए उनके
संघर्ष का एक
और कदम था। वर्ष
1991 में
नोबेल शाति पुरस्कार से सम्मानित की गई सू की को दो दशक से भी अधिक समय तक नजरबंद रखा गया और 2010 के आखिर में रिहा
किया गया। तब शायद
ही किसी ने सोचा होगा कि वह लोकतंत्र की जुझारू नेता से केवल 18 माह में ही एक पदाधिकारी बन जाएंगी। शपथ
लेने वाले बयान में सू की जिस शब्द को बदलना चाहती थीं, उसे बदलने बिना बाद में उनके शपथ लेने से साफ पता
चलता है कि आने वाले समय में उन्हें
कौन सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। म्यामार में अब भी
सेना का ही प्रभाव
है और असैन्य सरकार सेना की ही छद्म सरकार है। राष्ट्रपति थीन सीन की सरकार ने कई
राजनीतिक सुधार किए जिनमें राजनीतिक
बंदियों की रिहाई,
मूलनिवासी विद्रोहियों के साथ संघर्षविराम करना, मीडिया की सेंसरशिप में छूट और संसदीय उप चुनाव
कराना आदि शामिल हैं। इन उप
चुनावों के कारण ही सू की की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी संसद
में पहुंच पाई है।
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