मुंबई बनाम दिल्ली: क्यों दिल्ली को मिले धरोहर का दर्जा 18-10-2012
बीबीसी हिन्दी.डॉट कॉम के लिए तीन सदी पहले जब मीर बेमन से दिल्लीऔर अपने सरपरस्तों को छोड़ रहे थे तब उन्होंने लिखा, “दिल्ली जो एक शहर था, आलम में इंतिखाब.\'\' ये लिखते समय उनकी आंखें नम हुई हों ना हों, पुरानी यादों को ज़ुबां देते गला ज़रूर भर आया होगा. लेकिन ऐसा क्या है दिल्लीमें कि आज भी उसका ख्याल भर ये महसूस करा देता है कि इस शहर का वर्तमान भी उसका अतीत ही है? दिल्ली और धरोहर की बहस छेड़ने से पहले ये ज़रूरी कि हम ये सोचें कि ये दिल्ली आखिर कौन सा शहरहै. क्या दिल्ली वो शहर है जिसे राजा ढिल्लू ने कभी अपना नाम दिया? क्या ये वो शहर है जिसकी नींव खुदवाने की सनक राजा अनंगपाल तोमर को ले डूबी और मशहूर हुई कहावत, \'किल्ली तो ढिल्ली भई, तोमर भाया मत हीन\'? क्या ये दिल्ली वो दिल्ली है जो एक सदी बाद भी हमसे पत्थर, संगमरमर, ईंट, खम्बों, वृहत्तखंडों, झरोखों, किलों, महलों, मंदिरों, मस्जिदों, मज़ारों, दरगाहों और गिरिजाघरों के ज़रिए बोलती है? या ये शहर वो है जिसे इलतुतमिश, बलबन, तुग़लक, खल्जी, लोधी और मुग़लों ने बनाया और वो एक मूक दर्शक रही है बादशाहों के पतन की और साम्राज्यों के टूटने की? क्या दिल्ली असल में वो शहर है जिसे उसके संतों निज़ामुद्दीन, चिराग़, काकी और सेंट स्टीफन ने देखा? कहते हैं कि मुग़लों के समय में लाहौर सत्ता का केन्द्र बन गया था लेकिन दिल्ली की हस्ती अगर कम थी तो जिगर मुरादाबादी दिल्ली की याद में घुल-घुल कर क्यों मर गए? या जैसा मीर ने कहा, “दिल की बस्ती भी शहर दिल्ली है; जो भी गुज़रा उसी ने लूटा” अगर इस दिल्ली की मौत बार-बार हुई तो इस शहर में ऐसा क्या है जो इसे बार बार ज़िन्दा करता है? सवाल ये भी कि दिल्ली को सात शहरों वालीक्यों कहा जाता है, जबकि हमें ये 70 या 700 या उससे भी अधिक शहरों को खुद में समेटे एक बसेरे की तरह लगती है? सवाल ये कि, “कौन, क्यों, किसकी, या कौन है ये दिल्ली?” दिल्ली की बदलती शख्सियत दिल्ली में कुतुब मिनार से सटे महरौली का पुरातत्विक बगीचा और स्मारक 11वीं सदी से 19वीं सदी के बीच बने हैं. राजनीतिक लिहाज़ से बात करें तो दिल्ली को ख्याति एक तोमर शासक, अनंगपाल के शासन में मिली. अनंगपाल ने दिल्ली के लालकोट को स्थापित किया, जिसकी निशानियां महरौली में आज भी देखी जा सकती हैं, जिसे बाद में किला राय पिथौड़ा के नाम से जाना गया और यही दिल्ली सल्तनत का पहला शहर बना. उसके बाद दिल्ली अलग-अलग नामों से जानी गई- सिरी, तुग़लकाबाद, जहांपनाह, फिरोज़ाबाद, दिनपनाह और शेरगाह. एक सदी के दौरान बदली दिल्ली की वास्तुकला के बारे में बात करना तो ग्रंथ लिखने जैसा होगा. मसलन, कुतुब मिनार से सटे महरौली का पुरातत्विक बगीचा और गांव में जो स्मारक हैं वो 11वीं सदी से 19वीं सदी के बीच बने हैं. करीब 1638 में शाहजहां ने आगरा में क़िला-ए-मुअल्ला का निर्माण शुरु किया, जो अब लाल किले के नाम से जाता है. यही शाहजहानाबाद की नींव बनी जो दीवारों से घिरा एक शहर था और जिसमें 14 दरवाज़े और 21 दुर्ग थे. पुरानी दिल्ली की सांस्कृतिक धरोहर की नींव पर यही भारत के शासन का केन्द्र बना जिससे कुछ हटकर बना शहर नई दिल्ली. दिल्ली के अंदर बसे छोटे शहर हमेशा से वहीं बसे पुराने शहरों के इतिहास और बदलाव की ओर सजग रहे हैं. यानि शाहजहानाबाद को कुछ यूं समझा जा सकता है– शहर के अंदर बसा एक शहर, जहां मुसलमान बहुसंख्यक हैं, जहां पुराने गिरिजाघर, जैन मंदिर और गुरुद्वारे, मस्जिदों से सटे हैं. जहां मुसलमान कारीगर जैन और बनिया व्यापारियों और हिन्दू कायस्थ पत्रकारों के साथ रहते हैं. जहां कायस्थों के मांसाहारी पसंदे, शाकाहारी हलवे और तुर्की फलूदे के साथ खाए जाते हैं. जहां पुराने ज़माने के हकीमों ने नए ज़माने के \'सेक्सोलॉजिस्ट्स\' के लिए जगह बना दी है और जो अब भी इंसानों को काम वासना का मूल मंत्र समझाने में जुटे हैं. ये सब दिल्ली शहर की परस्पर निर्भरता और हर चीज़ को साथ लेकर चलने की एकरुपता का सूचक है. बहुसांस्कृतिक दिल्ली वर्ष 1911 में बंगाल के बंटवारे के विरोध से उठी राष्ट्रवाद की लहर को थामने के लिए ब्रितानी सरकार ने भारत की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित किया. दिल्ली देशभर से आने वाले लोगों के लिए सत्ता का केंद्र है जहां हर किसी के लिए कोई न कोई अवसर मौजूद है. शाहजहानाबाद पुरानी दिल्ली बन गया और 20वीं सदी के जाने-माने ब्रितानी वास्तुकार सर एडविन लुटियन्स और सर हरबर्ट बेकर पर आई बसे-बसाए शहर को नया रूप देकर नई दिल्ली बनाने की ज़िम्मेदारी. सत्ता में बने रहने के लिए राज परिवारों द्वारा अपने भाई, पिता और बच्चों को मौत के घाट उतारने की प्रवृत्ति सांस्कृतिक धरोहर में घुलती गई और उससे निकली आज की नई दिल्ली. जिसमें हिन्दू और इस्लाम धर्म के मिले-जुले अनोखे अंश थे, गांगा-जमुनी तहज़ीब थी. जिसने आने वाले लंबे समय के लिए कला, वास्तुकला, खान-पान, भाषा, काव्य, धर्म और परंपराओं पर अपनी छाप छोड़ी. विश्वभर में इस चलन को \'बहुसंस्कृतिवाद\' की संज्ञा दी गई है पर दिल्ली ने इस शब्द के इजाद होने से बहुत पहले ही इसका सार अपना लिया था. ये शहर एक धरोहर है क्योंकि दिल्ली ने सदियों से अलग-अलग कोनों से लोगों को यहां आकर बसते देखा, लेकिन बंटवारे की राजनीति के दौर में भी इस शहर को अब तक ‘बाहरी लोगों का विरोधी’ आंदोलन देखना बाकी |